श्री गणेश चतुर्थी की आप अभी को मंगलमय शुभकामनाएँ nnभगवान गणेश आप सभी को आरोग्यता, उत्तम बुद्धि, धन सम्पदा, सुखी जीवन और समस्त सुख वैभव से अनुग्रहीत करें nnश्री गणेश पंचरत्न स्तोत्र nnमुदा करात्तमोदकं सदा विमुक्तिसाधकंnकलाधरावतंसकं विलासिलोकरक्षकम् ।nअनायकैकनायकं विनाशितेभदैत्यकंnनताशुभाशुनाशकं नमामि तं विनायकम् ॥ १ ॥nnजिन्होंने अत्यंत आनंद से अपने हाथ में मोदक धारण किया हुआ है। जो सदा ही मोक्ष साधकों को मोक्ष प्रदान करते हैं। जो भक्ति भाव से विलासित होने वाले लोगों के मन को आनंद प्रदान करते हैं। जो सभी की नायक अथवा स्वामी हैं। जो दैत्यों का संहार करने वाले हैं तथा जो नतमस्तक हुए पुरुषों के अशुभ का तत्काल नाश करने वाले हैं। उन भगवान विनायक को मैं प्रणाम करता हूँ। nnनतेतरातिभीकरं नवोदितार्कभास्वरंnनमत्सुरारिनिर्जरं नताधिकापदुद्धरम् ।nसुरेश्वरं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरंnमहेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ॥ २ ॥nnजो प्रणाम मात्र से प्रसन्न होने वाले तथा प्रणत ना होने वाले अर्थात् उद्दंड मनुष्य के लिए अत्यंत भयंकर हैं। नवीन उदित सूर्य के समान अरुण प्रभा से उद्भासित देव जिनके चरणो में दैत्य और देवता सभी शीश झुकाते हैं। जो प्रणत भक्तों का भीषण आपत्तियों से उद्धार करने वाले हैं। उन सुरेश्वर, समस्त निधियों के अधिपति, गजेंद्र शासक, महेश्वर, परात्पर गणेशवर का मैं निरंतर आश्रय ग्रहण करता हूँ।nnसमस्तलोकशङ्करं निरस्तदैत्यकुञ्जरंnदरेतरोदरं वरं वरेभवक्त्रमक्षरम् ।nकृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करंnमनस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ॥ ३ ॥nnजो समस्त लोकों का उद्धार करने वाले हैं। जिन्होंने गजाकार दैत्य का विनाश किया है, जो लम्बोदर, श्रेष्ठ, अविनाशी और गजराजवदन हैं, कृपा क्षमा और आनंद की निधि हैं। जो यश प्रदान करने वाले तथा नमन शीलों को मन से सहयोग देने वाले हैं, उन प्रकाशमान देवता गणेश को मैं प्रणाम करता हूँ। nnअकिञ्चनार्तिमार्जनं चिरन्तनोक्तिभाजनंnपुरारिपूर्वनन्दनं सुरारिगर्वचर्वणम् ।nप्रपञ्चनाशभीषणं धनञ्जयादिभूषणंnकपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम् ॥ ४ ॥nnजो अकिंचन जनो की पीड़ा दूर करने वाले तथा देव वाणी के भाजन हैं अर्थात् देवता जिनका नित्य भजन करते हैं। जिन्हें त्रिपुरारी शिव के ज्येष्ठ पुत्र होने का गौरव प्राप्त है। जो देव शत्रुओं के गर्व को चूर्ण करने वाले हैं। दृश्य प्रपंच का संहार करते समय जिनका रूप भीषण हो जाता है। धनंजय आदि नाग जिनके भूषण हैं तथा जो दान की धारा बहाने वाले गजेंद्र रूप हैं, उन पुरातन गजराज गणेश का मैं भजन करता हूँ। nnनितान्तकान्तदन्तकान्तिमन्तकान्तकात्मजंnअचिन्त्यरूपमन्तहीनमन्तरायकृन्तनम् ।nहृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनांnतमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि सन्ततम् ॥ ५ ॥nnजिनकी दंतकांति नितांत कमनीय है, जो अन्तक के अन्तक अर्थात् मृत्युंजय शिव जी के पुत्र हैं। जिनका रूप अचिंत्य एवं अनंत है। जो समस्त विघ्नो का उच्छेद करने वाले हैं तथा योगियों के हृदय में जिनका निवास है, उन एक दंत गणेश जी का मैं सदा चिंतन करता हूँ। nnमहागणेशपञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहंnप्रजल्पति प्रभातके हृदि स्मरन्गणेश्वरम् ।nअरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रतांnसमाहितायुरष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात् ॥ ६ ॥nnजो मनुष्य प्रतिदिन प्रात:काल मन ही मन गणेश जी का स्मरण करते हुए इस महागणेश पंचरत्न का आदर पूर्वक उच्च स्वर से गान करता है, स्मरण करता है। वाह शीघ्र ही आरोग्य, निर्दोषता, उत्तम ग्रंथों एवं सत्पुरुषों का संग, उत्तम संतति, दीर्घ आयु एवं अष्ट सिद्धियों को प्राप्त कर लेता है। nnइति श्रीमद आद्य शंकराचार्य कृत गणेश पंचरत्नम पूर्ण ||
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भगवान श्री कृष्ण जन्मोत्सव महापर्व की हार्दिक शुभकामनाएं nnयत्कीर्तनं यत्स्मरणं यद्दर्शनं यत्वंदनं यदर्हणम्।nलोकस्य सद्यो विधुनोति कल्मषं तस्मयै सुभद्रश्रवसे नमो नमः ॥n nजिनका कीर्तन, स्मरण, वंदन, श्रवण तथा पूजन जीवों के समस्त पापों का तत्काल विनाश कर देता है, उन कल्याण कीर्ति भगवान् श्री कृष्ण को बारम्बार नमस्कार है। nnश्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व कि पूजा विधि कि लिए निम्न लिंक पर जाएं nnhttps://www.shdvef.com/wp-content/uploads/2021/08/%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A3-%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%AE%E0%A5%80-%E0%A4%AA%E0%A5%82%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BF.pdf
श्रीमद भागवत गीता - अध्ययन, मनन और व्याख्याnnStarting Live from 21/08/2021 till completion nn8- 10 AM every Saturday and Sunday
समझिए धर्म के मर्म को प्रश्नोत्तरी के द्वाराnnवर्तमान समय में सबसे बड़ी समस्या का समय। मनुष्य अपने काम, दफ्तर, घर गृहस्थी कि उलझनों में इतना फंसा है कि उसे पढ़ने का भी समय नहीं मिलता। इसलिए हम लाए हैं धर्म प्रश्नोत्तरी जिससे आप रोचक पूर्ण तरीके से धर्म को जान भी पाएंगे और समझ भी पाएंगे। आप केवल विद्यार्थी की तरह खेलिए और सीखिए क्योंकि यदि आप गलत उत्तर भी देंगे तब भी आप हर प्रश्न के अंत में उचित उत्तर प्राप्त कर जाएंगे। इसलिए आईए खेलें और सीखें धर्म का मर्म।nnhttps://www.shdvef.com/dharam-quiz/
अद्वयतारक उपनिषद् nnगुशब्दस्त्वन्धकारः स्यात् रुशब्दस्तन्निरोधकः ।nअन्धकारनिरोधित्वात् गुरुरित्यभिधीयते ॥ १६॥nnगु’ अक्षर का अर्थ है-अन्धकार एवं ‘रु’ अक्षर का अर्थ है-अन्धकार को रोकने में समर्थ । अन्धकार (अज्ञान) को दूर करने वाला ही गुरु कहलाता है॥१६॥nnगुरुरेव परं ब्रह्म गुरुरेव परा गतिः ।nगुरुरेव परा विद्या गुरुरेव परायणं ॥ १७॥nnगुरु ही परम ब्रह्म परमात्मा है, गुरु ही परम (श्रेष्ठ) गति है, गुरु ही पराविद्या है और गुरु ही परायण (उत्तम आश्रय) है॥१७॥nnगुरुरेव परा काष्ठा गुरुरेव परं धनं ।nयस्मात्तदुपदेष्टाऽसौ तस्माद्गुरुतरो गुरुरिति ॥ १८॥nnगुरु ही पराकाष्ठा है, गुरु ही परम (श्रेष्ठ) धन है। जो श्रेष्ठ उपदेश करता है, वही गुरु से गुरुतर अर्थात् श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम गुरु है, ऐसा जानना चाहिए॥१८॥